मेरे हर हूनर को, यूं भूलाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
शबनम से नाज़ुक अहसासों को,
हिमालय से ऊंचे, अरमानों को,
हर लम्हा रौंद पैरों से,तुम दबाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
बेरंग कर दिया, ख्वाबों के फूलों को,
जब छोटी-छोटी तील सी भूलों को,
खिंचकर ताड़ सा, तुम बनाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
मुस्कुराना था मेरी आदत में शुमार,
मगर मुझे अश्क ही मिले बेशुमार।
सब्र को मेरे नीत ही आजमाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।
सांसें चलना,रह गया बनके फर्ज।
जाने कौन से जनम का था कर्ज।
जिसे ताउम्र तुम किस्तों में भुनाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
शबनम से नाज़ुक अहसासों को,
हिमालय से ऊंचे, अरमानों को,
हर लम्हा रौंद पैरों से,तुम दबाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
बेरंग कर दिया, ख्वाबों के फूलों को,
जब छोटी-छोटी तील सी भूलों को,
खिंचकर ताड़ सा, तुम बनाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
मुस्कुराना था मेरी आदत में शुमार,
मगर मुझे अश्क ही मिले बेशुमार।
सब्र को मेरे नीत ही आजमाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।
सांसें चलना,रह गया बनके फर्ज।
जाने कौन से जनम का था कर्ज।
जिसे ताउम्र तुम किस्तों में भुनाते रहे।
बस ऐब ही मेरे, तुम गिनाते रहे।।
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