आँखों में सपने लिए कई ख्वाब सजाये बैठे हैं
कुछ मुसाफिर इक पत्थर से आस लगाए बैठे हैं
मुमकिन नही है शायद मिलना उनका इस जनम,
फिर भी वो ज़िद्द की इक दुकान लगाये बैठें हैं
तड़प रहे हैं इक दूसरे का वजूद ढूंढने में
पर सीने में ठंडी पड़ी इक आग जलाये बैठे हैं
कुछ मुसाफिर इक पत्थर से आस लगाए बैठे हैं
मुमकिन नही है शायद मिलना उनका इस जनम,
फिर भी वो ज़िद्द की इक दुकान लगाये बैठें हैं
तड़प रहे हैं इक दूसरे का वजूद ढूंढने में
पर सीने में ठंडी पड़ी इक आग जलाये बैठे हैं
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